यादों का वर्तमान !
यादों का वर्तमान ! जीवन के इस मुक़ाम पर पहुँचकर हम अतीत की यादों में खोते चले जाते हैं मेरे नाना जी का जो मुक़ाम था, वह मुझे मां, मामा और नाना से पता चलता था, बंगला, शिकारी कुत्ते, बड़े भेड़िये, घोडा, पक्षियों में मोर, बगीचों में खास अमरुद का बाग, लम्बी जोत आदि आदि ! और उनका रुतबा लोगों की भीड़ भाड़ सुबह सबेरे से ! कलाओं में संगीत और नृत्य के शौक़ीन पर मेरे नाना जी (श्री) और नानी मा के छुटपन में ही नहीं रहे थे जिसकी वजह से सबलोग चाहते थे की मा अपना हिस्सा लें और वहीँ रहें पर पिताजी इसके लिए तैयार नहीं थे, मा उनकी बातों का प्रतिकार तो कर ही नहीं सकती थीं, इसलिए भी हमलोगों का मान ज्यादा ही था ! हर कोई ऐसे ही लेता जैसे हम उनके खास हैं, आज तक जो अपने नहीं थे पर लगा नहीं वे दूसरे हैं ! अब जब मैं नाना हूँ तब मेरे नाती का बालमन किस तरह से मन ही मन मुस्कुरा रहा था और अपनी हर तरह की छवियाँ देता रहा जब तक नाना के पास रहा डा. साहब (उनके पापा) ने बड़ी कोशिश की वह रोये पर मुस्कुरा के रह जाता, नानी की गोंद तो उनका झूला होकर रह गई है, जब भी सोने जाना है नानी की गोंद से होकर ।
यादों का वर्तमान ! जीवन के इस मुक़ाम पर पहुँचकर हम अतीत की यादों में खोते चले जाते हैं मेरे नाना जी का जो मुक़ाम था, वह मुझे मां, मामा और नाना से पता चलता था, बंगला, शिकारी कुत्ते, बड़े भेड़िये, घोडा, पक्षियों में मोर, बगीचों में खास अमरुद का बाग, लम्बी जोत आदि आदि ! और उनका रुतबा लोगों की भीड़ भाड़ सुबह सबेरे से ! कलाओं में संगीत और नृत्य के शौक़ीन पर मेरे नाना जी (श्री) और नानी मा के छुटपन में ही नहीं रहे थे जिसकी वजह से सबलोग चाहते थे की मा अपना हिस्सा लें और वहीँ रहें पर पिताजी इसके लिए तैयार नहीं थे, मा उनकी बातों का प्रतिकार तो कर ही नहीं सकती थीं, इसलिए भी हमलोगों का मान ज्यादा ही था ! हर कोई ऐसे ही लेता जैसे हम उनके खास हैं, आज तक जो अपने नहीं थे पर लगा नहीं वे दूसरे हैं ! अब जब मैं नाना हूँ तब मेरे नाती का बालमन किस तरह से मन ही मन मुस्कुरा रहा था और अपनी हर तरह की छवियाँ देता रहा जब तक नाना के पास रहा डा. साहब (उनके पापा) ने बड़ी कोशिश की वह रोये पर मुस्कुरा के रह जाता, नानी की गोंद तो उनका झूला होकर रह गई है, जब भी सोने जाना है नानी की गोंद से होकर ।
यही अनुभव आनंन्द से भर देता है ।
सर्वमिदम् अब बड़े हो रहे हैं हम लोग यानी नाना नानी मामा मामी सब उनका ध्यान रखते हैं, दादा दादी चाचा चाची की दिक्कतें यह हैं की वो सुदूर गॉव में हैं उनका इनको इतना समय दे पाना मुश्किल है फिर भी वे जितना समय निकाल लेते हैं, पर्याप्त है फोन से आजकल दूरियां कम जरूर हुयी हैं लेकिन बचपन की बहुतेरी जरूरते होती हैं !
नानी जन्म से ही उनके साथ रहीं मम्मी पापा की चिंता से ज्यादा उनकी चिंता रहे, जब 6 माह बाद छोड़कर आ रही थीं तो दोनों का वियोग देखने योग्य था !
जब अब हमलोग सर्वमिदंम के पास जाते हैं तो खिलकर यानी खिलखिलाकर मुस्कराना और वापस आते समय अपलक निहारते रहना वचपन के ननिहाल के प्रेम की याद दिला देता है, जबकि मेरे बच्चों का ननिहाल का अनुभव अलग तरह का है, इसीलिए सब चाहते हैं की सर्वमिदंम कभी इस कमी को महशुस न करे की नाना नानी मामा मामी कितने अनिवार्य हैं।
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आईफैक्स नई दिल्ली में प्रदर्शनी में
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